लेखक सन्देश

श्री नागराज परिचय

कर्नाटक प्रांत के जन्में श्री अग्रहार नागराज ने सन १९५०-१९७५ ‘अज्ञात को ज्ञात’ करने अमरकंटक (म.प्र.) में साधना किया| साधना-समाधि-संयम विधि से उन्हें सम्पूर्ण अस्तित्व का दर्शन हुआ, चैतन्य रूपी परमाणु ‘जीवन’ के सम्पूर्ण स्वरूप का ज्ञान हुआ|

उन्हें ‘सहअस्तित्व रूपी’ यथार्थता, वास्तविकता एवं सत्यता अंतिम सत्य के रूप में समझ आया, अस्तित्व में वे अनुभव पूर्वक “जागृत” हुए| जिसे मानव के सम्मुख उन्होंने एक नए दर्शन – ‘मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद’ के रूप में प्रस्तुत किया है|

श्री नागराज जी के साथ विद्यार्थी संस्मरण

भूमि स्वगर्ताम् यातु, मनुष्यो यातु देवताम् ।
धर्मों सफलताम् यातु, नित्यम् यातु शुभोदयम् ।।

(“भूमी स्वर्ग हो, मनुष्य दवे ता हो,
धर्म सफल हो, नित्य शभु हो”)

उपरोक्त सवर्शुभ कामना श्रद्धेय बाबा जी (श्री ए. नागराज जी) द्वारा अनुभव ज्ञान में जागृत होने के उपरान्त उदघटित हुआ। इस शुभकामना को साकार करने की बाबा जी की यात्रा में अनेक लोग उनके संपर्क में आये और उनसे जुड़े। ऐसे कुछ साथियों द्वारा, बाबाजी के साथ बिताया समय, उनसे मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन के छोटे-बड़े संस्मरणों का एक संकलन इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है ।

मध्यस्थ दर्शन
लेखक सन्देश

श्री नागराज जी के साथ विद्यार्थी संस्मरण

नागराजजी के संपर्क में आये, साथ समय बिताये अनेकों साथियों के साथ उनकी स्मृतियाँ विडियो रूप में उपलब्ध है, जो नागराजजी के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है |

श्री नागराज जी की फ़ोटो

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