
मध्यस्थ दर्शन भाग-1
मानव-व्यवहार के लिए अस्तित्वगत आधार प्रदान करता है: और मानव जाति के सबसे जटिल प्रश्नों का उत्तर प्रस्तुत करता है | जैसे चेतना, चैतन्य, मानव-चेतना, चैतन्य में विकास एवं उसका क्रम, भ्रम एवं जागृति, तथा मानवीय गुण, स्वभाव एवं प्रवृत्ति की व्याख्या

मध्यस्थ दर्शन भाग-2
मानव कर्म एवं उनके फलों का आधार, उपासनाएं एवं ज्ञान खंड है| 9 प्रकार के 'कर्म' या गतिविधि जो हम अपने मन, शरीर और धन द्वारा करते हैं | पदार्थ की मौलिक प्रकृति को स्पष्ट करता है | साथ में ध्यान, ध्याता, दृष्टा, करता की स्पष्टता

मध्यस्थ दर्शन भाग-3
समझ/ज्ञान प्राप्त करने के लिए किए जाने वाले कायिक वाचिक मानसिक अभ्यास का विवरण। समझने के बाद ‘जीने’ का अभ्यास विभिन्न स्तरों पर इसकी अभिव्यक्ति। शास्त्राभ्यास, चिंतनाभ्यास, कर्माभ्यास | मुल्यानुभुती एवं योगाभ्यास

मध्यस्थ दर्शन भाग-4
चैतन्य इकाई में ‘मैं’संज्ञा को स्पष्ट करता है | इसका शून्य अथवा ब्रह्म के साथ संबंध को स्पष्ट करता है | ‘मैं’, ‘मेरा’, ‘यह’ और ‘जागृति’ के अस्पष्टताओं को हल करता है| अस्तित्व में बोध एवं अनुभव होने की व्याख्या | आनंद एवं परमानन्द की अनुभूति |
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