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उपासना :- देवी देवताओं के संदर्भ में।
कर्म :- स्वर्ग मिलने वाले सभी कर्म (भाषा के रूप में)
मनु धर्म शास्त्र में :- चार वर्ण चार आश्रमों का नित्य कर्म प्रस्तावित है।
कर्म :- स्वर्ग मिलने वाले सभी कर्म (भाषा के रूप में)
कर्मकाण्डों में :- गर्भ संस्कार से मृत्यु संस्कार तक सोलह प्रकार के कर्मकाण्ड मान्य है एवं उनके कार्यक्रम है।
इन सबके अध्ययन से मेरे मन में प्रश्न उभरा कि -।
मध्यस्थ दर्शन के अनुसार - ज्ञान व्यक्त वचनीय अध्ययन विधि से बोधगम्य, व्यवहार विधि से प्रमाण सर्व सुलभ होने के रूप में स्पष्ट हुआ।
(i) अस्तित्व में चार अवस्थाएं
और
(ii) अस्तित्व में चार पद
(iii) और
तथा जागृति सहज मानव परंपरा ही मानवत्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी नित्य वैभव होना समझ में आया। इसे मैंने सर्वशुभ सूत्र माना और सर्वमानव में शुभापेक्षा होना स्वीकारा फलस्वरूप चेतना विकास मूल्य शिक्षा, संविधान, आचरण व्यवस्था सहज सूत्र व्याख्या मानव सम्मुख प्रस्तुत किया हूँ।
भूमि स्वर्ग हो, मनुष्य देवता हो,
धर्म सफल हो, नित्य शुभ हो।
- ए. नागराज, 2005