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मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) में प्रतिपादित नवीन बिन्दुए

चेतना में निर्भ्रमता

पदार्थ से चेतना का निष्पत्ति नहीं है


(भौतिकवादी विचार )

चेतना से पदार्थ (लोक) का निष्पत्ति नहीं है


(अध्यात्मवादी चिंतन)

चैतन्य इकाई + पदार्थ - उर्जा-चेतना का अविभाज्य वर्तमान


(सहअस्तित्ववादी चिंतन)

ऊर्जा में स्पष्टता

पदार्थ, ऊर्जा में बदलता नहीं है


ऊर्जा, पदार्थ में बदलता नहीं


(भौतिकवादी विचार)

चैतन्य, ऊर्जा (ब्रह्म) में बदलता नहीं है


ऊर्जा, चैतन्य में बदलता नहीं


(अध्यात्मवादी चिंतन)

चैतन्य इकाई (जीवन) ही पदार्थ संसार का दृष्टा है,


पदार्थ और चैतन्य व्यापक (शून्य उर्जा- चेतना) में बनें रहते हैं


(सहअस्तित्ववादी चिंतन)

सहअस्तित्ववादी ज्ञान से

अस्तित्व


अस्तित्व व्यापक वस्तु (सत्ता) में भीगा, डूबा, घिरा जड़ चैतन्य प्रकृति रूप में नित्य वर्तमान है |


यही सह-अस्तित्व है |

चैतन्य


चैतन्य इकाई (जीवन) एक गठनपूर्ण परमाणु है, अविनाशी है | इसमें एक मध्यांश और ४ परिवेशों में अंश हैं । जीवन में जीने की आशा है |


जीवन ही मानव रूप में दृष्टा है

भ्रम -जागृति


जीवन सुखी होना चाहता है । जीवन ही अज्ञानवश भ्रमित, दुखी रहता है और ज्ञान पूर्वक जागृत, सुखी, समाधानित होता है | मानवीयता पूर्वक जीता है |


यही चैतन्य -जीवन लक्ष्य है

सहअस्तित्ववादी ज्ञान से

|| ब्रह्म सत्य ; जगत शाश्वत है ||


(शून्य रूपी सत्ता की ब्रह्म संज्ञा है, इसमें जीव-जगत नित्य है)

|| इश्वर एक; देवी-देवतायें अनेक ||


(व्यापक रूपी खाली स्थान, शून्य की ही इश्वर संज्ञा है, शरीर काल उपरांत जागृत चैतन्य इकाइयों की देवी-देवता संज्ञा है)

|| चैतन्य इकाई (जीवन) अविनाशी है, अमर है ||


(मन-वृत्ति-चित्त-बुद्धि एवं मध्यस्थ क्रिया चैतन्य जीवन के अविभाज्य अंग हैं, क्रियाएं हैं)




भौतिकवादी मानसिकता के अनुसारआदर्शवादी (अध्यात्मवादी) मानसिकता अनुसार
संवेदनाओं में अथवा संवेदनशीलता में अथवा अधिकाधिक संवेदनशीलता की निरंतरता में शुभ घटित होने का प्रयास विगत से करते रहे हैं धरती से दूर अज्ञात स्थली बनाम स्वर्ग में सुख है |जीना संज्ञा से मुक्त होना मुक्ति है , यह परम सुख बताये
  • इस धरती पर मानव इतिहास के अनुसार उन्नीसवी शतक आठवी दशक तक उक्त प्रकार से कमोवेशी संभी समुदाय सभी सर्व देश काल में बताये
  • उन्नीसवी शतक आठवी दशक के अंत में सर्व शुभ कामना सहित अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन, मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) का उदय हुआ
  • सभी शुभ परिणामों के प्रति आशान्वित हैं !
  • यह वस्तु ‘विकल्प’ विधि से ही स्थापित होगा | आज के बुद्धिजीवी इसे भारतीय परम्परा के साया में बताना चाह रहे हैं | विगत परम्परा के साथ इस विकल्प को मिलाना संभव नहीं है, न सफल होगा | ‘यह’ परम्परा से उद्गमित, परम्परा से भिन्न, परम्परा से आगे की बात है ! यह आप्त वाक्य है !
  • इसलिए, विगत के प्रति धन्यवाद, आगत के प्रति आशा !

तुलनात्मक तालिका

दर्शन 🡪भौतिकवाद (वस्तुवाद) रहस्यमयी अध्यात्म आधिदैवि, आधिभौतिक (आदर्शवाद)मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
चरित्र 🡪संग्रह भक्ति, विरक्तिमानवीयता पूर्णचरित्र, मूल्य, नैतिकता
लक्ष्य 🡪भोग, अतिभोग, बहुभोग मोक्ष, स्वर्ग अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था
दिशा 🡪संग्रह सुविधा के लिए व्यापार शोषण भक्ति, विरक्ति पूर्वक तप मानवत्व सहित व्यवस्था में जीना व समग्र व्यवस्था में भागीदारी करना
परिणाम 🡪व्यक्तिवाद, शोषण, युद्ध व्यक्तिवाद, समुदायवाद, संप्रदायवाद, विवाद, युद्ध समाधान समृद्धि अभय सहअस्तित्व
भौतिकवाद के अनुसार विज्ञान बड़ा और सही, विज्ञानी छोटा और अविश्वनीयइश्वरवाद के अनुसार ज्ञान बड़ा, ज्ञानी छोटाजबकि, मनुष्य ही ज्ञानी है, ज्ञानी से ही ज्ञान और विज्ञान दोनों व्यक्त होता है
भौतिक विज्ञान के अनुसार विज्ञान के विषय में आध्यात्मवादी ज्ञान, आदर्शवादी मान्यता के अनुसार सहअस्तित्ववादी ज्ञान विवेक विज्ञान के अनुसार
अनिश्चयता विज्ञान का देन है अनिश्चयता इश्वर का देन है अनिश्चयता भ्रमित मानव मानसिकता का प्रकाशन है
अनिश्चयता ही सत्य है ब्रह्म ही सत्य है इश्वर ही सत्य है ब्रह्म सत्य, सत्ता में संपृक्त प्रकृति ही परम सत्य है
विज्ञानी सत्य को नहीं जान पायेंगे इश्वर कृपा से सत्य ज्ञान होता है समाधि में सत्य ज्ञान होता है मानव सत्य को जान सकता है
विज्ञान ने यंत्र के द्वारा इन्द्रियों के सीमा को बढाया है इन्द्रिय ज्ञान असत्य है इन्द्रीय ज्ञान– रूप गुण पर्यंत सीमित है
विज्ञान के अनुसार मनुष्य एक जानवर है सफलता का बिंदु प्रजनन और आहार है मानव को ‘जीव’ कहा सफलता का बिंदु इश्वर इच्छा अनुसार होना है मानव ज्ञानावस्था की इकाई है सफलता का बिंदु जीवन जाग्रति, शरीर को स्वस्थ, समाधान समृद्धि अभय सहअस्तित्व संपन्न होना है
अनिश्चयता ही ‘दिमाग खुलने’ का प्रमाण है ‘दिमाग का बंद होना’ (निर्विचार!) होना ही दिमाग का खुलना है निश्चित वस्तु का बोध होना ही दिमाग का खुलना है
सभी प्राण कोशिका एक जगह से आया है | उद्गम क्यों और कैसे है, इसे विज्ञान समझ नहीं पाया प्राण कोशिका सामयिक सत्य है इश्वर का संरचना है !प्राण कोशिका स्वयं स्फूर्त विधि से अस्तित्व सहज प्रकटन है अस्तित्व में विकासक्रम, विकास है |