अवधारणायें > यथार्थता
आदिकाल से ही मानव चैतन्य जीवन और शरीर का संयुक्त साकार रूप है, जीव चेतनावश भय प्रलोभन रूप में जीवन शक्तियाँ पहले भी काम करती रही है, अभी भी काम कर रही हैं। इस आधार पर वर्तमान में भ्रम-निर्भ्रम संबंधी परीक्षण करने जाते है तब पता चलता है कि :-
इस ढंग से चलता हुआ आदमी, आँखों से दिखता है, उसे सत्य, यंत्र प्रयोग से प्राप्त परिणामों को सत्य, गणितीय अथवा तार्किक निष्कर्षों के आधार पर सत्य, ध्यान के स्थितियों में जो कुछ भी देखा होगा, उसके आधार पर सत्य, समाधि ज्ञान को सत्य का आधार माना है | जो कुछ भी हो, सत्य का स्वरूप अभी तक सार्वभौम विधि से, व्यवहार विधि से स्पष्ट नहीं कर पाए | जो भी त्रुटियाँ रही, उसे तर्क संगत बनाने के लिए अनेक महापुरुषों द्वारा अथक प्रयास हुआ | हमने समाधि को देखा है | समाधि में हमको पूर्ण ज्ञान हुआ नहीं | संयम करने से अस्तित्व में अनुभूत हुए |
अर्थात, मानव:
यह अनुभव सहज उद्घाटन मानव सम्मुख प्रस्तुत है
स्रोत: परिभाषा संहिता | अन्य लेख |
मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
प्रणेता एवं लेखक: अग्रहार नागराज