अवधारणायें > मानवीय संविधान
विधि विधान का संयुक्त रूप में संविधान विकसित चेतना सहज पारंगताधिकार ही विधि है। मानवीयता सहज साक्ष्य रूप में पूर्णता, स्वराज्य, स्वतंत्रता और उसकी निरंतरता को जानने, मानने, पहचानने व निर्वाह करने, कराने और करने योग्य मूल्य, चरित्र, नेतिकता रूपी विधान।
मानवीयता सहज जागृति व जागृति पूर्णता ही अखंड समाज, सार्वभोम व्यवस्था पूर्वक परंपरा के रूप में अर्थात् पीढ़ी से पीढ़ी के रूप में निरंतरता को प्रमाणित करता है। यह करना, कराना, करने के लिए सहमत होना मानव में, से, के लिए मौलिक विधान है।
मानव परिभाषा के रूप में ' मनाकार को सामान्य आकाँक्षा व महत्वाकॉक्षा संबंधी वस्तुओं और उपकरणों के रूप में, तन-मन- धन सहित, श्रम नियोजन पूर्वक साकार करने वाला, मन: स्वस्थता अर्थात् सुख, शांति, संतोष, आनंद सहज प्रमाण सहित परंपरा है । इसे प्रमाणित करना, कराना, करने के लिए सहमत होना मानव परंपरा में, से, के लिए मौलिक विधान है। मानव अपनी परिभाषा के अनुरूप बौद्धिक समाधान, भौतिक समृद्धि सहित अभय, सहअस्तित्व में अनुभव सहज स्रोत व प्रमाण
मानवीयतापूर्ण आचरण जो स्वधन, स्वनारी / स्वपुरुष, दया पूर्ण कार्य व्यवहार, संबंधों सहज पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्याँकन स्वीकृति, उभयतृप्ति व संतुलन तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग सुरक्षा के रूप में ही मानवीयता सहज व्याख्या है। यह मानव परंपरा में मौलिक विधान है।
मानवीयता पूर्ण आचरण सहजता, मानव में स्वभाव गति है। मानवीयतापूर्ण आचरण मूल्य, चरित्र, नेतिकता का अविभाज्य अभिव्यक्ति, संप्रेषणा व प्रकाशन है। यह मौलिक विधान है।
जागृति मानव सहज स्वीकृति है। मानव सहज कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता का तृप्ति बिंदु स्वानुशासन है। यह परम जागृति के रूप में प्रमाणित होता है। यह मानव परंपरा में मौलिक विधान है।
सार्वभौम व्यवस्था व अखंड समाज, मानव सहज वैभव है। मानव सहज कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता का तृप्ति बिंदु दश सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित होता है । यह मौलिक विधान है।
मानवीय-लक्ष्य परम जागृति के रूप में सार्वभौम है। मानवीयतापूर्ण अभिव्यक्ति, प्रकाशन सहज संप्रेषणाएँ, संपूर्ण आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्यों में समाधान, समृद्धि, अभय व सह अस्तित्व में अनुभव रूपी वैभव को प्रमाणित करता है। यह मोलिक विधान है।
जागृत मानव बहु-आयामी अभिव्यक्ति है। मानव सहज परंपरा में अनुसंधान, अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिन्तन मानवीयता पूर्ण अध्ययन, शिक्षा व संस्कार, आचरण व व्यवहार, व्यवस्था, संस्कृति-सभ्यता और संविधान ही सहज प्रमाण है। यही मौलिक विधान है।