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मानव क्या है?

मैं अपने में क्या हूँ? कैसा हूँ? व् क्या चाहता हूँ ?

  • मैं मानव हूँ|
  • मैं मनाकर को साकार करने वाला और मन:स्वस्थता का आशावादी हूँ|
  • मैं ज्ञानावस्था की इकाई हूँ|
  • मैं शरीर व जीवन सहज संयुक्त साकार रूप हूँ - मानव परंपरा प्रदत्त है मेरा शरीर और अस्तित्व में परमाणु में विकास फलत: जीवन सहज स्व-स्वरूप हूँ।
  • मैं जीवन सहज रूप में जानने-मानने-पहचानने-निर्वाह करने का क्रिया-कलाप हूँ|
  • मैं शरीर को जीवंत बनाये रखता हूँ - चेतना सहित पाँच ज्ञानेन्द्रियों पाँच कर्मेन्द्रियों का दृष्टा हूँ।
  • मैं मानवत्व सहित व्यवस्था हूँ समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने योग्य हूँ।
  • मैं बौद्धिक समाधान व् भौतिक समृद्धि संपन्न होना चाहता हूँ|
  • मैं भ्रम भय और समस्याओं से मुक्त होना चाहता हूँ|

मानवीयता

  • मानव कुल के साथ स्नेह करने की क्षमता ही विश्वास एवं संतोष की निरंतरता है|
  • यही अग्रिम विकास के लिए उत्साह एवं प्रवर्तन भी है|
  • मानवीयतापूर्ण आचरण मूल्य, चरित्र नैतिकता का अविभाज्य स्वरूप है|
  • इसको स्मरण में लाने, प्रेरणा प्रदान करने एवं मार्गदर्शन कराने योग्य क्षमता ही मानवीय संस्कृति है|
  • न्याय का सम्पूर्ण स्वरूप स्वयं के लक्ष्य के अर्थ में जीना, शरीर के साथ संयम पूर्वक जीना, प्रकृति के साथ संतुलन पूर्वक जीना और अन्य मानवों के साथ सम्बन्ध, जागृति और उन्नति के अर्थ में जीना है|
  • मानवीयता और अतिमानवीयता से संपन्न होने के लिए सहअस्तित्व में संकल्प, इच्छा व् विचार का परिष्कृत होना आवश्यक है जो संस्कार है|
  • इसके लिए चेतना में गुणात्मक परिवर्तन अनिवार्य है|