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मानव

भूमिका

भौतिकवादी विज्ञान विधि में मानव को मात्र शरीर रचना ही माना है | जीवों के अध्ययन से मानव को ‘सामाजिक प्राणी’ रूप में परिभाषित करने गए, इसमें मानव समझ आया नहीं | इसका साक्ष्य जीवों जैसे व्यवहार एवं परिभाषा एक भी मानव को स्वीकार नहीं है | मेधस रचना के अध्ययन से मानव समझने में आने वाला नहीं है | शरीर के किसी भी अंग-व्यय में सुख, न्याय, समाधान, ज्ञान, शांति की अपेक्षा होना प्रमाणित होता नहीं|

दूसरी ओर अध्यात्मवादी परंपरा में संचेतना की परिचर्चाएं रही | कुछ तपस्वी समाधि जैसे स्थितियों की गवाही भी दिए जिसमें शरीर से भिन्न वस्तु के अस्तित्व की बात रही | इसे आत्मा, जीव, बुद्धि, पुरुष, जैसे नामकरण भी किया गया | जीव के उत्पत्ति, प्रयोजन एवं कार्यरूप को बताने में यह परम्पराएं असमर्थ रहीं | फलस्वरूप वे रहस्य, वादाविवाद में फस गए | अधिकांश आदर्शवादी परम्पराएं रूढी में, अथवा सम्प्रदायों तक सीमित रह गए | फलस्वरूप प्रमाण विहीन बातों को विज्ञान विधि से नकारना बना |

हमने अस्तित्व को देखा है | अस्तित्व में चैतन्य जीवन को देखा है | चैतन्य इकाई मन-वृत्ति-चित्त-बुद्धि-आत्मा का अविभाज्य वर्तमान है | इसे गठनपूर्ण परमाणु के रूप में पहचाना गया है | भाषा परंपरा के हैं, परिभाषा हमारा है | चैतन्य इकाई के मध्यांश का नाम है आत्मा | प्रथम परिवेश का नाम है बुद्धि, द्वितीय परिवेश चित्त, तृतीय परिवेश को वृत्ति तथा चतुर्थ परिवेश को मन नाम दिया है | इनके निश्चित आचरण एवं क्रियाओं को पहचाना गया है |

अब शरीर और जीवन के संयुक्त रूप में मानव का अध्ययन सहअस्तित्ववादी विधि से संभव हो गया है |

मानव

  • व्यवहारिक परिभाषा - मनाकार को साकार करने वाला, मन:स्वस्थता का आशावादी एवं प्रमाणित करने वाला।
  • बौद्धिक परिभाषा - जड़-चैतन्य का संयुक्त साकार रूप।
  • तात्विक परिभाषा - अस्तित्व, विकास, जीवन, जीवन जागृति, रासायनिक-भौतिक रचना व विरचना रूप में शरीर का द़ृष्टा।
  • ज्ञानावस्था की इकाई (जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने का क्रियाकलाप)।

मानवत्व

  • परिवार व्यवस्था और सार्वभौम रूपी समग्र व्यवस्था में भागीदारी, मानवीयता पूर्ण आचरण मूल्य चरित्र नैतिकता प्रमाण; अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान विवेक विज्ञान सम्मत कार्य व्यवहार प्रमाण।
  • मानवीय द़ृष्टि, मानवीय विषय, वृत्ति और निवृत्ति, मानवीय तथा अतिमानवीय स्वभाव की अभिव्यक्ति, संप्रेषणा और प्रकाशन। मानवीयता पूर्ण जीवन, अतिमानवीय वैभव |
  • मानव अस्तित्व में जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य तथा वस्तु मूल्य को जानने-मानने, पहचानने-निर्वाह करने और सम्प्रेषित, प्रकाशित, अभिव्यक्त करने की क्रिया।
  • अस्तित्व में मानव अनुभव मूलक पद्धति से विचार शैली और जीने की कला अतिमानवीयता सहज ।
  • मनुष्य व्यवहार में सामाजिक, व्यवसाय में स्वावलम्बी, विचार में समाधानित, अनुभव में प्रामाणिकता को अभिव्यक्त, संप्रेषित, प्रकाशित करने की क्रिया।

मानवीय द़ृष्टि

  • न्यायान्याय, धर्माधर्म, सत्यासत्य की निर्णयात्मक क्षमता।
  • न्याय, धर्म, सत्य द़ृष्टि की क्रियाशीलता।

मानवीयता पूर्ण आचरण

  • मूल्य चरित्र नैतिकता का अविभाज्य वर्तमान

जीवन मूल्य

  • सुख शांति संतोष आनंद

मानव मूल्य

  • धीरता, वीरता उदारता
  • दया कृपा करुणा

मानव व्यवहार मूल्य

  • स्थापित मूल्य- कृतज्ञता, गौरव, श्रद्धा, प्रेम, विश्वास, वात्सल्य, ममता, सम्मान, स्नेह।
  • शिष्ट मूल्य-सौम्यता, सरलता, पूज्यता, अनन्यता, सौजन्यता, सहजता, उदारता, अरहस्यता, निष्ठा।

मानवीय चरित्र

  • मानव चरित्र अपने में स्वधन, स्वपुरुष/स्वनारी, दयापूर्ण कार्य व्यवहार।
  • प्रतिभा व व्यक्तित्व के संतुलन पूर्वक चरितार्थता (आचरण)।

मानव समाज लक्ष्य

  • समाधान, समृद्धि, अभयता और सहअस्तित्व सहज वर्तमान।
  • मानव संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था में सामरस्यता का वर्तमान।
  • मानवीय शिक्षा-संस्कार परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था और संविधान में सामरस्यता का वर्तमान ।
  • स्वराज्य और स्वतंत्रता का वर्तमान।

स्रोत: परिभाषा संहिता | अन्य लेख |
मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
प्रणेता एवं लेखक: अग्रहार नागराज