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अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन

मध्यस्थ दर्शन

सह-अस्तित्ववाद

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प्रणेता एवं लेखकः

ए नागराज

मध्यस्थ दर्शन क्या है ?

अस्तित्व सहअस्तित्व है |
यही परम सत्य है

भौतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक में अविभाज्यता की अभिव्यक्ति ही मध्यस्थ दर्शन है

दर्शन

मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) भारत वर्ष में निर्गमित एक नया दर्शन है जो श्री अग्रहार नागराज (1920-2016) द्वारा प्रतिपादित एवं लिखित है|यह “अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन” है|दर्शन का तात्पर्य वास्तविकता को जैसे है वैसे ही समझने तथा प्रकट करने से है|

स्रोत

मध्यस्थ दर्शन अस्तित्व में अनुभव की ही अभिव्यक्ति संप्रेषणा प्रकाशन है|यह ‘साधना-समाधि-संयम विधि’ से प्राप्त हुआ है|यह दर्शन अथा से इति तक प्रमाणिक एवं व्यवहारिक है|यह दर्शन स्वयं प्रयोग व्यवहार और अनुभवात्मक प्रमाणों के कसौटी से निकला हुआ है, इसीलिए निर्विवाद है|



विषय वस्तु

मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) विकास के क्रम में वास्तविकताओं के आधार पर नि:सृत जीवन दर्शन है|यह चैतन्य प्रकृति का रहस्य उद्घाटन करता है|इस दर्शन में यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता का प्रतिपादन है|प्रकृति एवं प्रकृति में अविभाज्य मानव, मानव में निहित चैतन्य पक्ष, चैतन्य में निहित चेतना, चेतना का आध्यात्म स्रोत, तथा आध्यात्म से अविभाज्य प्राकृति का अध्ययन है |

मानव जीनें में प्रयोजन

इस दर्शन में मानव के जीने के सभी आयाम तथा सभी स्थितियों से सम्बंधित सभी प्रश्नों के समाधान सार्वभौम रूप में प्राप्त हैं|जाति, वर्ग, एवं सम्प्रदाय विहीन अखंड मानव समाज को पाने के लिए सार्वभौमिक सामाजिक (धार्मिक), आर्थिक एवं राज्यनैतिक नीति प्रतिपादित करता है, जिससे सार्वभौम मानवीय व्यवस्था संभव होजिससे ही मानव जीवन का चिरंकांक्षित सुख शांति संतोष आनंद संभव है|

लेखक सन्देश

सत्यापन

जीवन ज्ञान संबंधी अध्ययन अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन विधि से प्राप्त हुआ। ऐसी प्राप्ति ए. नागराज, भजनाश्रम, अमरकंटक (म.प्र. भारत) निवासी को प्राप्त हुआ।

मैं, नागराज, बता रहा हूँ कि साधना समाधी संयमपूर्वक अस्तित्वमूलक मानव केंद्रित चिंतन मुझे समझ में आया। मैं इस आधार पर साधना किया।

मध्यस्थ दर्शन - संक्षिप्त परिचय

मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) सार्वभौम मानवीय संविधान, शिक्षा व् स्वराज्य व्यवस्था को प्रतिपादित करता है| ‘मध्यस्थ दर्शन’ रहस्य से मुक्त है|यह मनुष्य के सम्पूर्ण आयामों की यथार्थता, वास्तविकता और सत्यता को अध्ययन गम्य और बोध गम्य कराता है|‘मध्यस्थ दर्शन’ अनुभव बल की अभिव्यक्ति, सर्वतोमुखी समाधान की संप्रेषणा, न्याय पूर्ण व्यवहार नियम पूर्ण व्यवसाय व् आचरण पूर्ण पद्धति से जीने की कला को करतलगत कराता है| यह ‘चेतना विकास मूल्य शिक्षा’ रूप में अध्ययनगम्य है|

मध्यस्थ दर्शन
लेखक सन्देश

लेखक सन्देश

सहअस्तित्व अध्ययनगम्य हो चुकी है|
“व्यापक शून्यावकाश में स्थित अनन्त ब्रम्हाण्डों में से एक ब्रम्हाण्ड में अंगभूत इस पृथ्वी पर वर्तमान में पाये जाने वाले मानव अत्यन्त सौभाग्यशाली है, क्योंकि इनको ह्रास और विकास का अध्ययन एवम् प्रयोग करने का स्वर्णिम अवसर व साधन प्राप्त है …
पूर्ण विश्वास है कि सांकेतिक तथ्यों का अध्ययन करने के पश्चात् यह ग्रन्थ आपके व्यवहार एवम् आचरण में मानवीयता पूर्ण दृष्टि, गुण व प्रवृत्ति को प्रस्थापित करने की प्रेरणा देगा एवम् आपके व्यक्तित्व के विकास में सहायक होगा।

मानव जीने में प्रयोजन

व्यक्ति में समाधान:

जीने का लक्ष्य स्पष्ट, सभी प्रश्नों का उत्तर, बौद्धिक समाधान

फलस्वरूप

सुख, शांति, संतोष…

संबंधों में तृप्ति:

परिवार, कुटुंब में प्रयोजन पहचान, मूल्य निर्वाह

फलस्वरूप

विश्वास, सम्मान, स्नेह…

भौतिक समृद्धि:

परिवार आवश्यकता से अधिक प्राप्ति, ‘अभाव का अभाव’…

फलस्वरूप

उदारता, ममता ..

समाज में अभय:

नियम पालन, भागीदारी, सार्थकता पहचान

फलस्वरूप

अखंड मानव समाज

सार्वभौम व्यवस्था:

शिक्षा, उत्पादन, विनिमय, स्वास्थ्य, न्याय; परिवार से विश्व परिवार व्यवस्था सामरस्यता

फलस्वरूप

सार्वभौम अन्तर्राष्ट्र व्यवस्था

प्रकृति में सहअस्तित्व:

नैसर्गिकता, ऋतुमान, वर्षमान का संतुलन बनाये रखना

फलस्वरूप

धरती का संतुलन